INTRODUCTION OF ELECTRO HOMOEOPATHY
इलेक्ट्रो का अर्थ शरीर में पाए जाने वाली धनात्मक व ऋणात्मक शक्ति है, होम्यो का अर्थ समानता एव पैथी का अर्थ चिकित्सा व सिद्धांत से है। अत: इलेक्ट्रो होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति से मनुष्य में असामान्य शक्ति को पेड़-पौधों से प्राप्त रस में उपस्थित धनात्मक व ऋणात्मक शक्तियों के द्वारा समान किया जाता है।
इलेक्ट्रो होम्योपैथी असल में होम्योपैथी चिकित्सा का ही एक हिस्सा है, जिसमें पेड़-पौधों का औषधीय अर्क निकालकर उसका इस्तेमाल विभिन्न रोगों में आल्टरनेट थेरेपी के तौर पर किया जाता है। इस चिकित्सा पद्धति के अनुसार रोग के लक्षण और औषधि के लक्षण में जितनी अधिक समानता होगी, रोगी के ठीक होने की सम्भावना भी उतनी अधिक बढ़ जाएगी। इस थेरेपी का मुख्य काम रक्त में आई अशुद्धियों को दूर कर शरीर को बीमारियों से मुक्त बनाना है।
इलेक्ट्रो होम्योपैथी चिकित्सा विज्ञान की वह शाखा है। जिसमें सभी प्रकार की बीमारियों के लिये सिर्फ पेड़-पौधों के अर्क का इस्तेमाल किया जाता है। इस पद्धति द्वारा इलाज के दौरान किसी भी जानवर या अन्य किसी प्रकार के खनिज स्रोत का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। यह पद्धति पूरी तरह प्राकृतिक तरीकों से इलाज करती है। यह पूरी तरह सुरक्षित और बिना किसी साइड इफेक्ट के काम करने वाली थेरेपी है। अवसाद, आर्थराइटिस, माइग्रेन, अल्सर और अन्य अनेक प्रकार की गम्भीर बीमारियों का इलाज इस थेरेपी से सफलतापूर्वक किया जा सकता है।
इस कोर्स में डिप्लोमा और डिग्री दोनों स्तरों पर दाखिला लिया जा सकता है। डिप्लोमा कोर्स (D.E.H.M.) में दाखिला लेने के लिये दसवीं कक्षा अथवा उसके समकक्ष होना जरूरी है। वहीं डिग्री कोर्स (B.E.M.S.) के लिये 10+2 विज्ञान में फिजिक्स, केमिस्ट्री और बायोलॉजी विषयों के साथ उत्तीर्ण आवश्यक है। विज्ञान विषय में स्नातक भी इस कोर्स के लिये आवेदन कर सकते हैं। लेकिन यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि U.G.C. या MCI जैसे मान्यता प्राप्त संस्थान उपरोक्त कोर्स को मान्यता नहीं देते। हालांकि इसे मान्यता देने पर सरकार अब विचार कर रही है।
इलेक्ट्रो होम्योपैथिक रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन ऑफ इंडिया (ई.आर.डी.ओ.) के अध्यक्ष डॉ. के.पी.एस. चौहान के मुताबिक चिकित्सा के जगत में यह एक तेजी से उभरता हुआ क्षेत्र है, जिसमें करियर को लेकर अपार सम्भावनाएँ हैं। मेडिकल की अन्य शाखाओं की तुलना में इलेक्ट्रो होम्योपैथी की पढ़ाई सस्ती है इसलिये जो छात्र चिकित्सा के क्षेत्र में करियर बनाना चाहते हैं लेकिन, पैसों के अभाव के चलते ऐसा नहीं कर पाते, उनके सपने पूरे करने के लिये यह एक शानदार क्षेत्र है। विभिन्न सरकारी अस्पतालों और डिस्पेंसरियों में डिप्लोमा/डिग्री धारक को योग्यता और अनुभव के आधार पर आराम से 10 से 40 हजार रुपए तक वेतन मिल जाता है। अपना क्लीनिक खोलने पर आप अपनी योग्यता के हिसाब से जितना चाहें कमा सकते हैं। इतना ही नहीं विदेशों में तो और भी अच्छे वेतन पर आप काम कर सकते हैं। जैसे डेंटल सर्जन को अमेरिका में लगभग 1,10,000 सालाना के हिसाब से वेतन मिलता है।
Electro-Homoepathy is the name given to a new system of medicine discovered by a famous Italian scientist Count Cesare Mattei in the later part of the 1800’s. Count Mattei, the founder of Electro-Homoeopathy, was born on the 11th January in the year of 1809 in Bologna City in Italy. He belongs to one of the noblest families of learned town of Bologna.
After having studied natural science, he gave himself up to anatomy, physiology and pathology. Then more exclusively to chemistry and botany, after long and patients research following a method of his own, he discovered how to extract from certain plants the active principles which, alone or combine, form the agent in the new materia medica. Numerous and prolonged experiments upon the animal economy, experiments made first of all upon the dogs, have demonstrated the curative power of his remedies upon the organism, and at the same time have proved that they can never produce the slightest morbid alteration either in the organs or their functions.
He believed in the, famous Paracelsus who introduced law of similar. Thus convinced simultaneously of their immense utility and of their perfectly innocuous character, the count has applied to them with all confidence to all of the human beings. Further, in order to observe closely in numerable cases of disease, and the better to study the effect of these remedies, he held in his mention at Bologna, for more than ten years, public and private consultations in the presence of physician and surgeons who had attached themselves to him the purpose of being present at the sitting. It may be added of high person ages of all nations, physicians and even large medical bodies. But undoubtedly the German founder of Homoeopathy Hahnemann (1755-1843) and his doctrine have non the less influenced Mattei’s mind in his patients researches, leading principle trying to investigate the immediate effects of remedies and bring them into practical service according to the familiar rule. On the other hand, he borrowed from Paracelsus the process of preparing the vegetable substances by means of a more or less complicated mode of fermentation, called “cohobation”, and also the final combination of a number of ingredients with similar or supplementary effect to form a complex medicinal unity.
Mattei had written his first book in 1874 in Italian language, which was then published in other languages. When the Count Mattei aged in 1887 he had handed over all his work to his adopted son Mario Venturoli. Mattei has applied himself in his lifetime to the discovery of Materia Medica capable of modifying; not only the manifestation or symptoms of disease, but also their principle, or to speak better their first cause. It is by means of a theory the simple, with curative agents which he called Electricity in the remedies (Electro-Homoeopathy), so elementary that everyone may cure himself and his medicine is certainly the medicine of the future.
He died on 3rd of April 1896 at the magnificent castle of La Rochetta, situated in the heart of the Apennines. If there are but few honest hearts in this world, there is still enough remaining to bless his memory.
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